वो जो इश्क़ से दूर है,
लग रहे कुछ मजबूर है,
हिम्मत बाँधकर है बैठे,
किसी नशे में वो चूर है,
बंद आँखो से भी दिखे,
शायद उसका ही, नूर है
इंतिहा हुई, इंतज़ार की,
टूटे हम, और टूटी हूर है,
कब सिमटेगा यह तांडव,
सड़को पर दिखते लंगूर है,
कहाँ से लेते ऐसी तालीम,
दिमाग़ मे भरता फितूर है,
बातों का नही अब समय,
यहाँ केवल, डंडे मशहूर है,
शराफ़त का नही मोल 'साथी',
यह शरीफो का ही कुसूर है ||
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