Wednesday, August 31, 2016

कमज़ोर और बेबस


कैसे मैं करूँ यह बयान
उसके आँसू पवित्र थे,
बनाए जो टूट टूट कर,
ज़िंदगी के वो चित्र थे,

गिनती थी साँसे हर पल,
खुशियाँ गम से सींचती थी,
किस्मत को देती थी दोष,
खुद ही रेखाए खींचती थी,

आदमी पर इल्ज़ाम लगाकर,
हर मौसम, रोना आता था,
हर मुश्किल उसपर आती,
बेबसी ही उसका छाता था,

दूसरो को कमज़ोर बताकर,
आगे बढ़ जाती थी,
खुद को वो ज़ोर बताकर,
तालियाँ हज़ार पाती थी

हर वृक्ष के तले वो,
गाती थी गाने तन्हाई के,
होंठो मे रखती थी शोले,
दिखावे के और रुसवाई के,

प्रेम की बातें अनगिनत,
पर इल्ज़ाम दूसरे का,
पीने की इच्छा है खुद,
पर जाम हो दूसरे का,

'तुम क्या जानो मुझे',
ये वाक्य बस आम था,
दिल मे बसा ज़्वलामुखी,
ज़हर ज़ुबा मे तमाम था,

आख़िर बराबरी कर ली,
मुखौटे हज़ार लगा कर,
ताकतवर है वो आज,
खुद को कमज़ोर बना कर,

जो भी देखते थे,
लोग इंसान बुलाते थे
पर उसकी आदतों से उसे,
कमज़ोर, बेबस पाते थे ||

Sunday, August 28, 2016

सफ़र


जेबो में भर के वो आँसू, कहते है ये तो नाम है,
ना बोले वो कभी प्यार से, पर दिल में बसता राम है,

हैरां हूँ मैं यह देख कर, गिरने कि हद भी गिर बैठी,
हंसते है अब वो देख के, जब भी होता कोई काम है,

कैसी फ़ितरत हम बना बैठे, जो देखे रह जायें हैरान,
बिन खोले आँखे खुद से हम, हर कोने में बदनाम है,

सोचा था मिल जाएगा वो, जो सच का ही बस साथी हो,
पूछा हमने जब रस्ता तो, वो बोले वो गुमनाम है,

बस ठाना था अब दिल मे ये, कि ढूँढ के उसको लाऊंगा,
जब कदम पड़े दो धूप में, सोचा बेहतर आराम है,    

फिर भी निकला मैं निश्चय से, घर बार सभी छोड़ा मैने
देखे पत्थर तो माना ये, इस पीड़ा का ना बाम है,

टूटा दिल मेरा भूख से, समझा कि क्यूँ अपराध है,
राहों में देखे दर ऐसे, ना जाने जो क्या आम है,

देखी हिम्मत, देखा पैसा, देखा इन्सा कैसा कैसा,
घर कि हालत तो खाली है, सड़कों में लेकिन जाम है,   

सोचा कि ताक़त देखूं मैं, इन सब लोगो से मिल मिल के,
जब गहराई से पहचाना, तो पाया टूटे तमाम है,   

भूला था खुद इस जग को मैं, कुछ करने की अब चाहत थी,
जब देखा मैने कब्रिस्तान, ये जाना कि सब आम है,
   
हैरानी में डूबा था मैं, ना समझा क्या होगा ' दोस्त',

जब अंधेरा गहरा सा था, मैं समझा कि हल श्याम है ||

Sunday, August 21, 2016

प्रेम कहानी


छुप-छुप कर वो दीदार करते थे,
सामने आए तो तकरार करते थे,

शर्माकर पलट जाते थे अक्सर,
दिल जाने, हमसे करार करते थे,

मन में दबाए रखते थे इच्छाए,
होंठो से ना कभी प्रचार करते थे,

कैसे होता है कोई घायल पल में,
संग हमारे बैठ, विचार करते थे,

फँस गये वो एक दिन जब पाया,
हमारा हर रोज़ इंतज़ार करते थे,

मुस्कुराकर समझाया उसे 'साथी'


हम भी उन्ही से प्यार करते थे ||

Saturday, August 20, 2016

Thoughts (Fibonacci Poetry)


The,
Sea,
Is love,
And the waves,
Are the temptations,
Delighted soul reflects unity,
Unaware body is trapped inside the sensations

Tuesday, August 16, 2016

दे ना सके


पौधे को पानी दे ना सके,
अपनी वो जवानी दे ना सके,

गाते है गीत जुदाई के,
खुद को मनमानी दे ना सके,

मन की बातें, बस करते है, 
उसको वो रवानी दे ना सके,

जब भी देखे एक कली खिली,
सोचे, ज़िंदगानी दे ना सके, 


लिखने को आतुर थी पगली,
वो एक कहानी, दे ना सके,

तन्हा अक्सर रोते 'साथी',
वो एक कुर्बानी दे ना सके ||


Sunday, August 7, 2016

दोस्ती है


साँस लेने मे नहीं,
कुछ पल जीने में ज़िंदगी है,
छूकर तेरी परछाई को,
तुझे महसूस करने में ज़िंदगी है,

वक़्त गुज़र जाता है,
तुझे पाने में ज़िंदगी है,
बिने तेरे जो भी रहे,
उसकी मयखाने में ज़िंदगी है,

समय के परे ले जाते है,
ऐसे विचारों में ज़िंदगी है,
बिन बोले जो गले लगाते है,
ऐसे एहसासों में ज़िंदगी है,

खो जाते है अक्सर ये जान,
तेरी ही बस्ती में ज़िंदगी है,
वैसे तो हज़ारो मिलते है, पर,
दोस्तों की दोस्ती में ज़िंदगी है |

The Race


The crux of the matter,
Is only to flatter,
The world shines at bay,
In search of who’s better?

Better is love and care,
Like a rainbow, a blissful layer,
Oh, Did I miss the point,
Yes, I do & it’s fair,

The landscape of eternity,
Captured in my fraternity,
Whose existence is a riddle,
Not to be misread as maternity,

The rosy ripples of thoughts,
Misunderstood & hardened knots,
Life still flows with a flow,
Changing umpteen plots,

Better is the silent joy,
A tight hug & a toy,
Entangled human race,
Trained to become a decoy,

The shadows will be killed by the sun,
Changing paradigm, leaving stun,
But the race will last forever,

As the sanity will die, for fun.