Monday, September 22, 2014

एहसास हो गया


एक पल ही नज़रे हटाई हमने, तो वो ज़ालिम नाराज़ हो गया,
उसकी हँसी जो होंटो से लगाई, तो दिल-ए-गुलज़ार वो साज़ हो गया,

सूनी सी सर्दी में ठिठुरी राहें थी,तन्हाइयों की गर्म चादर ओढ़े,
ऐसी धुन में रमे हम उसके, जैसे वो अब दिल की आवाज़ हो गया,

भूले थे खुद को हम ऐसे, जैसे सुबह में रात घुली हो,
पर कुछ लगाए उसकी बातों ने, दिल अपना ऊँचाइयाँ छूता बाज़ हो गया,    

ना कभी किया वो एहसास, इस कदर दिल संभाले रखा था, 
बस नज़रे होते ही चार, उस प्रेम की व्यथा का आगाज़ हो गया

किसको हैं अब होश ज़माने का, उसमे ही डूबे है हम "ए दोस्त"   
अब तो हुस्न-ए-जहान वो,  मेरे पल पल का एहसास हो गया ||

Friday, September 19, 2014

Life (A kerf)


That scent of truth and tear,
Crafting numerous fires,
Freely nurturing seed of blazing thought,

A matter so unclear,
Dove is flying for desires   
Trees are viciously protecting that clot,

Who understands the life?
Mysterious agony, 
Wrapped inside all those flawless unknown scars,

A synonym of strife,
A deep bitter symphony,
People call it as “life” away from stars. 

Thursday, September 18, 2014

Copy (A Cinquetun)


Tried immensely to copy moves,
Blown away by blankness
Drowning inside hollow tryst without clue,
Trusting in fishy grooves,
Forgetting my identity,
Lost Blue

Monday, September 8, 2014

बेबस हूँ मैं आज यहाँ


बेबस हूँ मैं आज यहाँ ,
इन शमताओ की विषमताओ से,
पर्वतीय रुपी धोखों एवं ,
ज़हरीले शब्दों की घटाओ से,
बेबस हूँ मैं आज यहाँ ,
नयनो से बरसते सावन से,
अशुरक्षित है इंसा जहा,
उस अद्भुध जग के रावण से,
बेबस हूँ मैं आज यहाँ
उन मृत इच्छाओ के तेज़ से,
चुभते है जो सदैव यहाँ,
एसे काँटो की सेज  से,
शुधा विहीन जीवन जीते,
थकान की अब लाज कहाँ,
सुख की हर आशा में मैं मग्न,
बेबस हूँ मैं आज यहाँ।  

Wednesday, September 3, 2014

दर्द की दवा


सोचता हूँ बैठे बैठे आँगन मे,
कैसी होगी वो सुबह,
जब बन जाएगी,
हर दर्द मिटाने की दवा,

क्या तब भाईचारा प्रधान होगा,
लालच और द्वेष के परे,
क्या सब का सम्मान होगा,
होंगे घर प्रेम से हरे,

क्या तब मुखौटे उतर जाएँगे,
एक रंग मे रंग जाएगा यह समाज,
छोड़ के बदले की हर याद,
भूल जाएगा क्या सब उपहास,

क्या तब अमीर अमीर,
और ग़रीब भी अमीर ही होगा,
क्या मज़बूरी मे पिसते शरीरो का,
आज़ाद कुछ ज़मीर भी होगा,

क्या तब इल्ज़ामो की बौछारे,
सूखे मे तड़पती सी होगी,
क्या तब सलाखो की बातें,
हर इंसान को ख़टकती सी होगी,

या फिर भी वो इंसान,
दवा जमा करता रहेगा,
दूसरो को दुगने मे बेचने के लालच मे,
पाप सदा करता रहेगा |

Tuesday, September 2, 2014

ये कैसा रिश्ता

क्या किया एक कवि ने आज तक,
अपनी कविता के लिए,
क्या कभी उसने साथ मे,
दो पल भी मुस्कुरा कर है जिए, 

बस लिखता रहा,
अपना गम और बातें,
और वो भोली सी सरिता,
बहती रही, बिता अपनी दिन और रातें, 

क्या मिला उस मासूम को,
बन के एक दर्द का ज़रिया,
क्योकि दर्द तो दर्द ही रहा,
ना बदला उसका नज़रिया,

कमाता रहा वो शोहरत,
और श्रोताओ की तालिया,
पर उस दीवानी को,
ना दे पाया खुद से - दो बालिया,

अपने आक्रोश और जोश का,
सारी दुनिया मे डंका बजाया,
पर उस मासूम प्रेमिका को,
कभी उसने पास ना बुलाया,

बस करता रहा इस्तेमाल,
ऐश्वर्य और अभिमान के लिए,
उस दुल्हन के शृंगार को,
ज़ालिम ने दो पल भी ना दिए,

क्या फ़र्क हुआ फिर,
इंसान और कवि में,
कविता तो बस जलती रही,
प्रकाश मे इस अंधे रवि के |

Monday, September 1, 2014

Shades of Love (Cromorna)


Touches our soul,
So pure love,
A beautiful goal,
Naughty love,

Creator of smile,
Touchy love,
That makes us agile,
 Restless love,

Falling tears of joy,
Binding Love,
A harmless decoy 
Love and love.

Living mirrors (Baccresieze Poetry)


Witness that shining light in me,
Or bitter emptiness to free,
Battered soul or heated object,
..................................... Living mirrors

Intelligent pack of errors
Or a bumpy theist to preach,
Living unknown identity,
......................................Living mirrors,

Copying emotions too fast,
Cacophony is attracted,
We are all basically same
......................................Living mirrors.