Wednesday, November 5, 2014

लिखना है इतिहास


खुश्बू अपने ही करमो की,
इस कदर मुझको थी भाई,
सपनो की महकती बगियाँ में,
हीरो की फसल उगाई,

सब बोले ये नामुमकिन है,
मुमकिन पर नज़र तुम डालो,
इन्सा हो तुम इस धरती के,
भगवन के ख्वाब ना पालो,

लेकिन जाना था मैने भी,
मेहनत का है ना तोड़ कोई,
जो ठाने यहाँ कुछ करने की,
दिखता उसको ना मोड़ कोई,

जब जीवन सबका अलग अलग,
राहें क्यूँ एक ही जानें,
जब मृत्यु का ही पता नही,
तो डर की अब क्यूँ माने, 

हीरे बनते है आज वही,
तपते है जो यहाँ बरसो,
गर लिखना है इतिहास तुम्हे,
भूलो क्या कल, क्या परसो.

Monday, November 3, 2014

महफ़िल-ए-एहसास

 
राहों में चला हूँ ऐसे मैं आज, अविश्वाश के पॅलो को छोड़ आया हूँ,
लगता है ज़मीं को निराहते निहारते, मैं आस्मा से तारे तोड़ लाया हूँ,

इन अदभुद्ध अनुभूतियों को मैं आज, कैसे करूँ बयान इस ज़ुबा से,
महफ़िल--एहसास में मैं जनाब जैसे, काली परछाई निचोड़ लाया हूँ,

अनगिनत रंगो से सॅज़ी मेरी दुनिया, नवीन ढंग बनाती है हर पल,
लगता है जालिम--हया की गर्दन, बिन छुए ही मैं मरोड़ लाया हूँ,

ना आस थी दीदार--इश्क की हमको, अक्षर तो अपने मासूम से थे  ,      
लगा मुझको जब दामन जो समेटा, यादें ज़िंदगी भर की मैं जोड़ लाया हूँ  

नामुमकिन से लगते थे जो पल कभी, वो भी देख बैठे हम '-दोस्त'
कहते हैं सब फनकार यहाँ मुझको, अक्स खुदा का ज़ॅमी में मैं बेजोड़ लाया हूँ ||