Tuesday, January 24, 2017

पर्दा


कुछ पैसों में इतने लीन है,
मानवता उनके लिए दीन है,

बातें करते है मीठी मीठी वह,
आत्मा अंदर से, नमकीन है,

नयी दुनिया बसाने की बातें,
रंगो के मौसम में गमगीन है,  

फूलों को खिलाने की न इच्छा,
फल पाने का सपना हसीन है, 

पर्दो सी ज़िंदगी जीते है 'साथी'
इस बात का पक्का यकीन है || 

आज भी


आज भी ढूँढ रहा हूँ,
मैं अपनी हँसी को,
जो रुक गयी थी,
एक समय में,
जो आगे ही नही बढ़ा,
कौन कहता है,
कि समय नही रुकता,
पूछो उनसे जिन्होने,
खोया है कोई अपना |    
आज भी ढूँढ रहा हूँ,
मैं परछाई अपनी,
जो छुपी बैठी है,
मेरे ही आस पास कहीं,
ना जाने क्यूँ,
वो भी कुछ ऐसी है,
साथ तो मेरे है हर्सू,
पर दिखाई नही देती,

बिल्कुल तुम्हारी तरह |

Monday, January 16, 2017

दो-राहे



आज भी उसी दोराहे,
में बैठा हुआ हूँ मैं,
जिसे बारिश के वक़्त,
कभी ना छोड़ता था,
गर्मी के वक़्त निचोड़ता था,
सर्दी के वक़्त, सिकुड़ता था,
बस यूँ ही ताकता था,
जमी हुई बर्फ खिड़कियों की,
खेलते बच्चे बेफ़िक्रे से,
कही भागते से अमीर,
कहीं रुके हुए वो ग़रीब,
मस्कुराती हुई राहें,
असमंजस में पड़े यात्री,
आख़िर चुनाव बहुत मुश्किल,
होता है राह चुनने का,
जैसे कि मुझे ही देखो,
आज भी बैठा हूँ मैं,
उसी दोराहे पर, जिसे,
कल भी चुन ना पाया था,
और आज भी शायद वैसा ही हो,
लोग कहते है कि,
वक़्त बदल जाता है,
लेकिन मेरा वक़्त,
तो शायद थम गया है,

इस दोराहे में ही कही ||  

Sunday, January 15, 2017

Come Out


What are you waiting for?
Don’t cling onto the darkness,
Addictions are two faced,
Rips you apart instantly,
Creating an emotional hoax,
Drains all your zest,
Come out of your closet,
Into the shining sun,
Or step into the moon light,
Sunk in the sensations,
That you want to shrug off,
And live those moments,
Live them to decimate,
Live them to become fragile,
Live them to erase,
From your sugary locker,
To make space,
For new sensations,
For new energy,
For new buds,
To craft a rainbow,
A fragrance of bliss,
Lively moments,
Into your soul,
To set yourself free,

Come out of your closet.

दर्द


धरती की तरह उसने, जन्म दिया था,
माँ ही थी वो जिसने, कत्ल किया था,

अद्बुध दुनिया की कहानियाँ, अद्बुध,
न जाने कौन सा विष उसने पिया था,

अनेक राज़ दबे है हर चाँदनी के तले,
न जाने किस पाप का बदला लिया था, 

घनघोर अंधेरे में रहती थी सदियों से,
फिर भी कैसे बुझाया उसने दिया था, 

बस एक बात कोई देख न सका 'साथी'
                अपने दर्द को उसने हर रोज़ सिया था || Dr. DV|||