Thursday, October 30, 2014

स्वप्न सलोना


आँसू टपका था आँख से,
जो मन पिघला के ले गया,
तेरी भीनी सी खुश्बू से,
वो दिल धड़का के ले गया,

तेरा चेहरा यूँ दिखाकर वो,
नींदे उड़ाकर ले गया,
चूड़ी तेरी खनका के वो,
मेरा चैन चुरा के ले गया,

मुस्कान तेरी समझा के वो,
खुश्बू जहाँ की दे गया,
छन से छनकाती पायल से,
एहसास तेरा ही दे गया,

मैं तो बस जैसे प्यासा था,
रस-रंग तेरा वो दे गया,
वो स्वप्न सलोना तेरा था,
गम में भी खुशियाँ दे गया   
         

Tuesday, October 28, 2014

सोच


चाहतो की बारिशो में गर गम नही होते,
रंजिशो के समन्द्रो में डूबे हम नही होते,

पा लेते आस्मा एक दिन ज़रूर खोते खोते,
आँसुओं की भूल भुलैया में गर गुम नही होते,        

कैसे जीते ये जिंदगी नीरस और बेजान,
साथी हमारे हर पल गर तुम नही होते,

अपना जस्बा-ए-इश्क़ ना समझे वो ज़ालिम,
वर्ना किसी और के आज सनम नही होते,

हम तो आँसू छुपा के जी लेंगे 'ए-दोस्त',
ज़िंदगी मे गॅमो के मौसम कम नही होते ||

Monday, October 27, 2014

What a fool I am


 
What a fool I am,
I want lone success,
If failure disappears from life,
Will success be known as success?

What a fool I am,
I want only to smile,
If tears disappear forever from eyes,
Will smile be known as smile?

What a fool I am,
I believe in luck,
If desires disappear from my book,
Will luck be known as luck?

What a fool I am,
I say “I love you”,
But if I will learn to hate nobody,
Will I use “you” in I love you?

What a fool I am,
I know each and every word with its meaning,
When unable to follow them in my life,
I craft my world full of actions so “Demeaning”  


Friday, October 24, 2014

Loneliness (Acrostic Poem)


 
Lustful nights pricking the soul,
Outrageous desires limping
Nostalgic senses hypnotized,
Elations of darkness are jumping
Loneliness of heart, soul & mind,
Inept emotions juggling a life,
Nerd sense of humor is dead,
Encircling only tears and strife,
Stop this unbearable pain of anxieties & restlessness,
Serve me a drink of blood, O My Friend, and put an end to my madness.


Monday, October 13, 2014

प्यार की डोरी



वफ़ा-ए-हुस्न के भी यहाँ, बड़े ही दिलचस्प अंदाज़ है, 
प्यार भी है हमसे, और हम ही से वो नाराज़ है,

बहती नदियो सी कोमल, सुर्ख हवाओ सी सयानी है,
वो सिर्फ़ रानी ही नही, वो तो मेरे गीतो का साज़ है,

आसमानो की चाहत ना रही, ना ही तारों की आस है, 
ये इंसानो की सोच नही, परिंदा-ए-इश्क़ का आगाज़ है,

बोलती है बड़े प्यार से, कि हमे केवल देखते ही हो क्यूँ, 
कौन समझाए आफताब को. यह एहसास-ए-दिल बेआवाज़ है,

बस होंठो से लगाए रखते है, अब तेरे ही नाम को 'ए दोस्त',
जिंदगी देने वालो को खुदा बनाने का, बना बैठे हम रिवाज़ है ||   

कवि - दिवाकर पोखरियाल

Sunday, October 12, 2014

दर्द का सिला


ना समझे थे,
दर्दे दिल को,
केवल समझे,
बढ़ते बिल को,
 
इन चढ़ते से,
मन के विष में,  
डूबे लाखो,
बस रंजिश में,

ढूँढे हर एक,
मॅन कि इच्छा,
ना जाने पर,
क्या है अच्छा,

हूँ हैरान मैं,
ये देख अब,
ना जाने तोड़े,
दिल वो कब,

कैसे पूछूँ खुद से,
मैं अब,
जब मारे छुरियाँ,
मुझको सब,

रह गया मैं,
कुछ अकेला सा,
एक ना संभला,
सवेरा सा,

फिर भी दिल मे,
यह आशा है,
शायद मुझको,
ही तराशा है,

बनाऊंगा धरती,
को स्वर्ग सा मैं,
पल पल में,
भरता रंग सा मैं | 

Saturday, October 11, 2014

सफ़र


जेबो में भर के वो आँसू, कहते है ये तो नाम है,
ना बोले वो कभी प्यार से, पर दिल में बसता राम है,

हैरां हूँ मैं यह देख कर, गिरने कि हद भी गिर बैठी,
हंसते है अब वो देख के, जब भी होता कोई काम है,

कैसी फ़ितरत हम बना बैठे, जो देखे रह जायें हैरान,
बिन खोले आँखे खुद से हम, हर कोने में बदनाम है,

सोचा था मिल जाएगा वो, जो सच का ही बस साथी हो,
पूछा हमने जब रस्ता तो, वो बोले वो गुमनाम है,

बस ठाना था अब दिल मे ये, कि ढूँढ के उसको लाऊंगा,
जब कदम पड़े दो धूप में, सोचा बेहतर आराम है,    

फिर भी निकला मैं निश्चय से, घर बार सभी छोड़ा मैने, 
देखे पत्थर तो माना ये, इस पीड़ा का ना बाम है,

टूटा दिल मेरा भूख से, समझा कि क्यूँ अपराध है,
राहों में देखे दर ऐसे, ना जाने जो क्या आम है,

देखी हिम्मत, देखा पैसा, देखा इन्सा कैसा कैसा,
घर कि हालत तो खाली है, सड़कों में लेकिन जाम है,   

सोचा कि ताक़त देखूं मैं, इन सब लोगो से मिल मिल के,
जब गहराई से पहचाना, तो पाया टूटे तमाम है,   

भूला था खुद इस जग को मैं, कुछ करने की अब चाहत थी,
जब देखा मैने कब्रिस्तान, ये जाना कि सब आम है,
   
हैरानी में डूबा था मैं, ना समझा क्या होगा 'ए दोस्त',
जब अंधेरा गहरा सा था, मैं समझा कि हल श्याम है ||

कवि - दिवाकर पोखरियाल

Friday, October 10, 2014

Self-Destruction

Fluttering sighs can sense,
Swelling darkness,
Bamboozled entities,
Don’t know what to harness,

Is that a hard question?
Worth discussing in light,
Oh my stupid human,
Your existence is in plight,

Murdered & torn apart,
Benevolent heart is a crime,
Tarnished image & polluted thoughts,
Fills the requirement of being prime,

Oh my stupid human!
Frenetic tenses are dying,
Throw away that logic,
Even your stars are now lying

Shining sun will die,
Twinkling starts will not inhale,
Earth will end in thirst,
Humanity will become a tale.

The end will be barbaric,
Of the most civilized race,
Oh lord what a satire,
They’ll erase their own trace.

Thursday, October 9, 2014

खुद-खुशी


उन चंचल चंचल नैनो में, हर पल कुछ यू मरते थे हम,
एक दिन के 24 घंटो में, बस याद उन्हे करते थे हम,

सावन की छूती बरखा में, भीगे थे उनकी ममता में,
बस उनके ही आकाश में, उड़ने से ना डरते थे हम,

उनका यौवन एक जादू था, जिसने हमको था मुग्ध किया, 
बस उनकी एक आवाज़ से, गिर गिर कर भी उठते थे हम,  

तडपे थे हम अब प्यार में, उनकी मीठी मुस्कान में, 
उनकी झलक एक पाने को, मीलो मीलो फिरते थे हम,        

क्यूँ मौत को गले लगा लिया, मत पूछो तुम मुझसे 'ए दोस्त',
जब भी मिलते थे सपनो में, बस बाहों में गिरते थे हम ||  

कवि - दिवाकर पोखरियाल