Saturday, December 31, 2016

नया साल


इस नये साल में चलो, हम इंसान हो जाए,
गम से भरे अफ़सानो के, मेहमान हो जाए,

ढूँढ ले जहाँ भी पानी बहता दो आँखों से,
उन आँखों का, खोया हुआ सम्मान हो जाए,

समझे जो खुद को बादशाह इस ज़माने का,
हर उस बिगड़े शहज़ादे का अपमान हो जाए,

बदल ना सके जो किस्मत अपनी पल में,
हर उस फकीर की अब हम ज़ुबान हो जाए,

बाँधकर रखता हो जो परिंदो को पिंजरों में,
ऐसे रिवाज़ की चलो अब हम थकान हो जाए,

पत्थर की नगरी दिखती है जहाँ नज़र घुमाओ,
दे पनाह दिल को साथी, ऐसा मकान हो जाए

एक सा देखे जो हर एक बंदे को यहाँ 'साथी',

       ऐसे वतन पर हम चलो अब कुर्बान हो जाए ||      

Thursday, December 29, 2016

Sunday, December 18, 2016

होता


पंछी को पिंजरे में रखना, जो प्यार होता,
मीठी हर छुरी पर फिर मुझे ऐतबार होता,

भूल जो जाता गम अपने कोई यहाँ आकर,
ऐसे हर इंसान से, फिर मेरा करार होता,  

होते जो दुनिया बदल देने के बीज यहाँ, 
ऐसे पौधों से भरा बाग, मेरा शृंगार होता, 

बसा सकता जो मैं शहर अपना कही भी,
उस शहर में ना कभी, पीठ पर वार होता, 

नज़रे उठाने की हिम्मत जो होती उसकी,
वो शैतान, नगरी में हमेशा, शर्मसार होता, 

जो पता होता दुनिया होती है ऐसी 'साथी',
यहाँ आने से पहले, मैं पक्का फरार होता  ||

A Senryu









A transformation,
Colourless to colourful,
That was just a tear


Wednesday, December 14, 2016

नही ठहरते


कुछ लम्हें ठहर जाते है, केवल इंसान नही ठहरते,
रुक जाती है साँसे अक्सर पर विमान नही ठहरते,

मैं तो हूँ बंजारा, ना इश्क़ करता हूँ, ना ही नफ़रत,
खो जाती है मंज़िलें, पर जो है महान, नही ठहरते,

समझने मे ज़ाया ना करो वक़्त, बस चलते चलो,
कहते है बड़ी होती है जिनकी ज़ुबान, नही ठहरते,   

हिम्मत का तोहफा नही देता खुदा हर किसी को,
तूफान में बंद कर देते है जो दुकान, नही ठहरते, 

मैं खुद से ही इश्क़ ना कर पाया अब तलक ‘साथी’,
कर जाते है कुछ पलों में इश्क़ जो, नही ठहरते ||

Sunday, December 11, 2016

दोराह


मैं उससे कह ना पाया,
वो मुझसे कह ना पायी,
बीत गये लम्हे इंतज़ार में,
ना बुझी प्यास, ना अग्न लगाई, 

अधूरे हो तुम, अधूरा हूँ मैं,
पर ज़िंदगी पूरी होती है,
बह जाओ लहरो संग तुम,
बर्बादी, सुंदर हो भी रोती है,

पर फिर भी शांत ही हूँ मैं,
तुम भी शायद ऐसी ही हो,
मैं भी बदल ना पाया खुद को,
शायद तुम भी वैसी ही हो,

इसलिए छोड़ दिया है अब,
इस कशमकश को दो राहों में,
वक़्त ही शायद करेगा फ़ैसला,

बाहों में होंगे या मिलेंगे आहों में ||

Sunday, December 4, 2016

World of sighs


I whispered a wish,
Into the subconscious mind,
The universe obeyed,
Tried to become kind,

I woke up in the middle,
Of a musical treat,
Mind was awestruck,
Heart enjoyed the beat,

Oh! Where am I?
My thoughts were jumbled,
Notes were kissing ears,
But the mind was scrambled,

I ran towards the street,
There was no sign of tears,
Green animals were waving,
Colorless souls were without fears,

My heart was giggling,
Mind was still wary,
Since when we had become innocent,
This is so scary,

I passed by a shop,
And checked my pocket,
Money was missing,
Sighs on the rocket,

Take this Oh Man!,
A voice struck my ear,
You are looking so tired,
Have water without fear,

I am thirsty friend, but,
I have nothing to pay,
He gave me a bottle & said,
If you wish, you can stay,

I ran in disbelief,
Innocence is so suspicious,
Oh! Where I am God?
This reality is so vicious,

My head banged into a pole,
Went flat to the ground,
People came rushing,
An ambulance’s sound,

Hospitals were so silent,
No hue and cry around,
I grasped the abnormality,
The severity knew no bound,

Hoping for the best,
I closed my eyes
With a faint sound I realized,
I was back, in the world of sighs.




Friday, December 2, 2016

स्वाद


दो पल की ज़िंदगी में, एक तकरार का,
दूजा जो रह गया, वो पल है इकरार का,

कैसे कह दूं मैं, कि इश्क़ है मुझको तुमसे,
दुनिया का डर नही, डर है तो इनकार का,

ढूँढे मेरी अखियाँ, तेरे रूप की छाया हर्सू,
 कैसे उतारू क़र्ज़, तेरी पायल की झंकार का  

बाँधा है खुद को मैने, जुदाई के पल में,
ज़हर पिया ना जाए, अब तेरे इंतज़ार का,

गले से लगा बस, मुझको एक बार 'साथी' 
                     स्वाद मैं भी तो चख लू, अपने प्यार का || Dr. DV ||