Thursday, February 5, 2015

मुसाफिर


गरजना और बरसना, सबको आता है यहाँ,
बेंतिहा चलता है जो,मंज़िल पाता है यहाँ,

आँधी, तूफान या अंधेरो से डर के मत बैठो,
डूब जाता है जो,समुंद्र से मोती लाता है यहाँ

कैसे पहचानोगे अपनी खुली आँखो से उसको, 
ध्यान मे लीन, पूरी दुनिया जो चलाता है यहाँ

टूटे शीशे और टूटे एहसासो से भीगी है दुनिया, 
मत पूछो कि वो देव आजकल जाता है कहाँ,

मसीहा बनने की चाह हमने भी रखी थी 'जालिम',
बस बता दे कोई, इतनी हिम्मत वो पाता है कहाँ ||