Saturday, September 30, 2017

प्यार


बचपन का समय अक्सर यादगार होता है| पढ़ाई मे तेज़ ना होने पर तो शायद थोड़ा कम हो, परंतु कुछ लम्हे या अनुभव ऐसे होते है जो जीवन भर के साथी बन जाते है| रोहित भी कुछ ऐसा ही था बचपन में, ना ज़्यादा दोस्त, ना ही कोई गर्ल फ्रेंड, ना पढ़ाई में अव्वल| लड़कियों से बात करने में थोड़ी हिचकिचाहट और बस वही सब खेल खराब| अपने घर में उसको समय नाम की चीज़ मिलती ही नही थी| स्कूल से आते ही ट्यूशन और रात को 10 बजे घर और फिर खाकर सो जाना|

खेलने का मन होने के बावजूद ना खेल पाना अक्सर उसको बुझा देता था, शायद कल में जीने वाले इंसानो के बीच में आज के बारे में कोई नही सोचता| दोस्त तो वो बनाना चाहता था पर स्वाभाव से इंट्रोवर्ट होना अक्सर नुकसान दे देता है और घूमने की बात करने पर घरवालो का गुस्सा| इंट्रोवर्ट नुकसान इसलिए देता है कि साथ के बच्चे अक्सर मस्ती मारने में और इधर उधर घूमने में मस्त रहते है तो आप आराम से बोल नही पाते और घर वाले तो चाहते है कि बच्चा कही ना जाए और बस केवल घर से ट्यूशन और उसके बाद फिर घर| लेकिन ऐसे माहौल में ऐसे में रोहित की मुलाकात किसी से हुई , उसको लगा कि कोई तो ऐसा था जो उसको सुधारने और बिगाड़ने की बातो से परे था| उससे बात करने का समय नही था कोई, रोहन जब भी चाहता था उससे बात कर सकता था| मोबाइल फोन्स का होना शायद कुछ हद तक सही भी होता है|

रोहित अपना खाली समय अक्सर उसकी के साथ बिताता था| सोचता था कि कितना अंतर है इसमें और बाकी सभी दुनिया में| इससे मिलकर रोहित बहुत खुश रहता था, उसे ऐसा लगता था जैसे वो खुद से ही मिल रहा हो| मन के अंदर की हज़ारो उलझने बस जैसे सुलझ ही जाती थी| और वो भी कम नही थी| रोहित की हर जिज्ञासा वो शांत कर देती थी| रोहित की हर बात सुनने को हमेशा तैयार| ना कोई मौसम का बहाना होता था और ना ही कोई समय कम होने के गुज़ारिश| जब भी मिलते थे दोनो बस एक दूसरे में ही खोए रहते थे|

कहते है की इश्क़ होने की कोई उमर नही होती, शायद ये भी इश्क़ ही था| पर जब इश्क़ करने वालो ने इश्क़ शब्द सुना ही ना हो तो वो इसको क्या कहे? शायद कुछ कहने की ज़रूरत नही होती, क्योकि किसी भी एहसास को बंद करके एक डब्बे में डालकर उसपर एक काग़ज़ चिपकाकर उसका नामकरण नही होता| शायद जब आपको पता ही ना हो की आप इश्क़ में हो तभी इश्क़ सच्चा होता है| क्योकि जब आप इश्क़ का नाम-करण कर देते है फिर तो वो रिश्तों की तरह बँध जाता है, जिसको असर लोग इल्ज़ामो की आग में जलाने को तत्पर रहते है|

रोहित तो जानता भी नही था कुछ इश्क़ के बारे में और शायद वो भी नही जानती थी इसलिए दोनो बस इधर उधर की बातें करते रहते थे| कभी मम्मी पापा से छुप कर तो कभी ट्यूशन से वापिस आते हुए| रोहन तो बस अपने आपको उससे व्यक्त करने में और उन बातों से सुकून पाने में व्यस्त रहता था| पढ़ाई और मा बाप की आशाओं का बोझ, दोस्त ना होने का अकेलापन और पढ़ाई में अच्छा ना होने का दुख, सब कुछ भुलाने के लिए कोई तो चाहिए था उसको| एक छोटा बच्चा अकेला इतना बोझ कहाँ उठा पाता है? और उसके आस पास वाले भी अक्सर इस बोझ के बोझ को नही समझ पाते| वो नही समझ पाते की नये बच्चे नये रास्ते बना सकते है| उनको तो पुराने रास्ते और उनपर बिछे काँटे ही नज़र आते है, और उन काँटों से बचने के लिए वो पहले ही एक नये फूल को काँटा भेंट कर देते है|

और आज 20 साल के बाद जब रोहित ने मैदान में दो बच्चों को खेलते हुए देखा, तो उसको याद आया उसका बचपन और बचपन का वो प्यार जो आज बहुत आगे बढ़ चुका है| अब रोहित को कभी भी अकेले होने का एहसास नही होता| शायद यही प्यार है जो हमेशा के लिए आपने साथ रह जाए|

(डॉ. डी. वी.)

#Moments #Love