Sunday, January 17, 2016

गहराई


कवितायें अब कहाँ बिकती है,
संवेदनाए अब कहाँ दिखती है,   

बोल कर बस हवा हो गये वो,
ज़िंदगी जिनकी ना बदलती है,

दिखा ना पाए कोई दर मुझे,
खुशियाँ जिनके यहाँ टिकती है,

मल्हार बने बैठे है, वो लोग,
जिनसे कश्ती ना संभलती है,

कोरा काग़ज़ पूछता है 'साथी'
          मेरी आख़िर, क्या ग़लती है  || DV ||

Thursday, January 14, 2016

भरोसा


मुझे गर्त मे डाल, वो हवा हो गये,
खून के मेरे आँसू, वो दवा हो गये,

खबर जब सावन की आई मुझको,
आँखो को बंद किया, जवां हो गये,

इश्क़ का खेल भी बहुत है निराला,
बस याद से लगे, हम धुआँ हो गये,

वो प्याला बन के सामने आए हमारे,
प्यास को जगाया, हम कुआँ हो गये,

अदायें उसकी हम क्या बताए 'साथी',

       उसने गले लगाया, हम दुआ हो गये || DV ||

Friday, January 1, 2016

हिम्मत


उस दिवाकर को देख, ये दिवाकर हैरान हुआ,
बस दो घड़ी अंधेरे से, कैसे मैं परेशान हुआ,

वो तो जल रहा है सदियो से रोशनी बाँटता,
फिर मेरा ये ईमान कैसे, अभी से हैवान हुआ,

जाने कितने अंधेरे मिटाए है, इसने धरती के,
और कुछ बोल से कैसे, अब मेरा अपमान हुआ,  

दिखाई ऐसी दुनिया इसने, एक पल में पलटकर,  
फीका सा वो रोटी का टुकड़ा, मेरा पकवान हुआ, 

बहुत कमज़ोर महसूस करता था खुद को 'साथी' 
             इस काफिले के आते ही, हर भय अंतर्धान हुआ || DV ||