Saturday, April 4, 2020

गर वो मिल जाती



ना चाहता कुछ और खुदा से मैं, 

मेरे चाहने से गर वो मिल जाती, 

चाहतो का गुलिस्ता रखता सामने, 
मेरे चाहने से गर वो खिल जाती, 

बैठती गर सामने मेरे कभी वो, 
मज़ाल नज़र मेरी जो हिल जाती, 

उधेड़ता दर्द की अनगिनत परतें, 
मेरे चाहने से गर वो सिल जाती, 

ना छोड़ता, उस धरती को कभी, 
जिस मिट्टी, हँसी वो मिल जाती, 

संतुष्ट रहता जीवन भर मैं यहाँ, 
इश्क़ का गर देकर वो तिल जाती 

जीते जी पा लेता मैं स्वर्ग 'साथी'. 
देकर दिल को गर वो दिल जाती ||

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