Saturday, May 9, 2015

लालच


तपती रूह से बोल उठा वो,
भीगे नयन भी खोल उठा वो,
जीवन से जो रूठ गया था,
ज़हर हवा में घोल उठा वो,

दिल की गहराई मे देखा,
अपनी परछाई में देखा,
अंधेरो का जो वास मिला बस,
खुद को कठिनाई मे देखा,

जीने का अब होश नही था,
दिल में कोई जोश नही था,
ऐसा कुछ बाँटा था खुद को,
मौत से उसको रोष नही था,

ख़त्म हुआ व्यापार भी एक दिन,
ख़त्म हुआ वो भार भी एक दिन,
कब तक वो ढोता लालच को,
छोड़ गया संसार वो एक दिन|

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