खुद से बँध जाते है वो अक्सर, जो बंधवाने की बात करते है,
डर से भीगे है अनंत वो और दूजो को उड़ाने की बात करते है,
कर्म करने मे आसक्त इंसान, कोरे शब्दो के बाण नही चलाते,
खुद से खुश रहते है जो यहाँ, ना कभी फँसाने की बात करते है,
अजब रीत बनाई है तूने इस जॅग में, हैरत सी लगती है मुझको,
ज़िंदगी की बातें नही करते वो, केवल कमाने की बात करते है
प्रेम में आज़ादी होती है, इंच्छाओ एवं भय की छाया नही होती,
अज्ञानता के अंधेरे में होते है जो, वो ही उजाले की बात करते है,
हर इंसान में होती है एक कला, निखारना उसको ही है भक्ति,
एक रास्ता अक्सर दिखाते है जो, वो ही डराने की बात करते है,
जानते है यह सच, सब कुछ यही रह जाना है एक दिन 'साथी',
फिर भी व्यर्थ की ज़िद मे, दूजो को समझाने की बात करते है |
कवि - दिवाकर पोखरियाल
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