Monday, November 4, 2013

बह जाने दे तू आज मुझे


बह जाने दे तू आज मुझे,
इस अनदेखे उफान में,
निर्ममता और निर्लजता के,
इस स्वाभाविक तूफ़ान में,
बह जाने दे इस धारा को,
उन देवो के इतिहास में,
जो धारा रक्त से सींची है,
अब सम्भावी है परिहास में,
वैरागी का त्रिशूल कहाँ,
इसे संभोगी में रंगना है ,
बह जाने दे इस तेज़ को,
जिसको अन्धकार से डरना है,

बह जाने दे तू आज मुझे,
इस जग में बस अब साँप है,
भक्ति में भी अब शक्ति कहाँ,
सत्य का पथ भी पाप है,
बह जाने दे तू आज मुझे,
जीवन का आरम्भ समाप्त है,
बह जाने दे तू आज मुझे।

दिवाकर पोखरियाल  

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