शाखा से टूटकर जो गिरा था,
बहुत ही बदनसीब था वो पत्ता,
माँ की माला का हिस्सा ना बना ||
अंधेरे की चादर ओढ़े वो सोया था,
एक सवेरा जो खुद से था अंजान,
हक़ीक़त से सपनो तक का सफ़र ||
किसी को पैसा चाहिए, किसी को आज़ादी चाहिए,
किसी को शांति चाहिए, किसी को आबादी चाहिए ||
बहुत दिनो से कहना था,
पर कभी मौका ना मिला,
दोस्त कैसे, दुश्मन बना ||
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