कविता का अर्थ,
बस किताबों में है,
लेखक का सामर्थ,
बस खिताबों में है,
ना कविता का जिस्म,
ना उसकी ज़ुबान है,
समय के गुलाम हम,
केवल धन की दुकान है
इस्तेमाल ही करते है,
एहसासो की रानी को,
बुढ़ापा मरता है रोज़,
देखे हम जवानी को,
ना समझे कविता को,
ना खुद को समझे है,
आगे बढ़ते समय में भी,
कल के ही चम्चे है,
ज़ंज़ीरो को तोड़ने की,
हिम्मत उसमे नही है,
जहाँ होता नही है कोई,
शायद अब वो वही है
कैसे बोले वो व्यथा,
दिल में छुपाई है जो,
जल रही पल पल कविता.
यह आग लगाई है जो ||
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