कुछ पत्ते ज़मीन को सजाए थे,
कुछ पत्ते आसमान को भाए थे,
इतनी थी दूरी तेरे मेरे दरमिया,
जितने इस चाँद ने दाग पाए थे,
थी पराकाष्ठा एहसासो की ऐसी,
दिन मे भी मैने दीप जलाए थे,
शायद डर था तुझे खो जाने का,
इसलिए मैने सब सपने मिटाए थे,
पर कहाँ थी खबर ये मुझको 'साथी'
इश्क़ ने कांटें मेरे लिए बचाए थे || Dr. DV ||
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