टूटे सपनो के टुकड़े लेकर, मैं सो गया
प्यारी सी ज़िंदगी, आँसुओं में धो गया ||
मेरे इंतज़ार में वो, दुनिया से छन गयी
मैं नही पहुँचा, वो भोली, चाँद बन गयी ||
अभी तो रात का, आख़िरी पहर आया है,
तुम समझे साहिल, मैने लहर को पाया है ||
लिखते-लिखते वो कवि, कविता लिख गया,
बूँद-बूँद जोड़ा उसने और सरिता लिख गया ||
मुझसे ना पूछो तुम अब, मेरा हाल 'ए साथी',
खुद की बर्बादी की दास्तान, सुनाई नही जाती ||
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