Sunday, November 20, 2016

दो पंक्तियाँ

टूटे सपनो के टुकड़े लेकर, मैं सो गया  
प्यारी सी ज़िंदगी, आँसुओं में धो गया ||   


मेरे इंतज़ार में वो, दुनिया से छन गयी 
मैं नही पहुँचा, वो भोली, चाँद बन गयी ||  


अभी तो रात का, आख़िरी पहर आया है,
तुम समझे साहिल, मैने लहर को पाया है ||


लिखते-लिखते वो कवि, कविता लिख गया,
बूँद-बूँद जोड़ा उसने और सरिता लिख गया || 


मुझसे ना पूछो तुम अब, मेरा हाल 'ए साथी',
खुद की बर्बादी की दास्तान, सुनाई नही जाती ||

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