आज चाँद को
सहलाया था थोड़ा,
एहसासो के सागर
मे डुबोकर,
रूह को छू
गयी थी उसकी
चाँदनी,
जब पास आया
और सांसो में
समाया,
आतुर था वो
रोशन करने मे,
पर मेरी प्रेम
की छाया में
ज़्यादा था काजल,
सितारो के जैसे
स्वप्न थे हमारे,
शायद ऐसा ही
कुछ था अपना
मिलन,
निर्मलता
की पराकाष्ठा थी
चहु ओर,
मेरे लबो मे
जब उसका नाम
आया था,
हर ओर घटाए
बरस रही थी
जालिम सी,
ना जाने कब
आँखो में प्रतिबिंब
आ बैठा,
सरहदे ना थी
अब बीच में
कही,
बस मैं था
और था मेरा
चाँद.
हम दोनो ही
डूबे थे आज,
एक प्यार मे, एक
दीदार में.
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