तड़पती सी है
दुनिया सारी,
या सिर्फ़ तू ही
तड़पती है,
दरिंदो के बीच
रहती है हर
पल जो,
तो क्यूँ नही बिजली
की भाँति कड़कती
है,
कौन है तू
- एक सुंदर गुड़िया,
जो घर के
कोनो में आँखें
भिगोती है,
या है तू
आज़ादी की वो
लड़िया,
जला कर संसार
को भी जो
नही रोती है,
कौन है तू
- एक बहकी जवानी
,
सब जान भी
अंधेरो में जो
सोती है,
या है तू
वो ज्योत दीवानी,
अंधेरे की भूलभुलैया
में भी जो
ना खोती है,
कौन है तू
- बस एक आवाज़,
जो सिफ्र पानी ही
हर पल भरती
है,
या है तू
वो निर्णायक शंखनाद
जो,
हर युध का
पूर्णतया अंत ही
अब करती है,
कौन है तू
- एक अबला नारी,
कर्कश शब्दो के प्रहारो
से जो डरती
है,
या है तू
एक शक्ति का
स्त्रोत,
राख जो हर
एक पापी को
यहाँ करती है,
कौन है तू
- एक उदासीन साया,
जो इल्ज़ाम दूसरो पर
ही लगाती है,
या है तू
वो दैवी छाया,
हर किसी को
राह पर चल
कर जो बताती
है,
कौन है तू
- एक मज़बूर कड़ी,
शब्दो में जिसकी
कमज़ोरी ढलती है,
या तू है
वो जीवंत ज्वाला,
हर खुशी जिसके
आँचल में पलती
है,
इतने रूप है
तेरे सुनहरे,
सबमें समन्व्य क्यूँ नही
तू करती है,
दरिंदो की क्या
होगी औकात,
गर खुद ही
खुद से तू
नही जलती है.
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