Thursday, July 17, 2014

एहसान

रफ़्तार कदमो की ही तो थी जो यू चली थी,
कमी सांसो की ही तो थी जो यू खली थी,

जिंदगी में हमसफर जैसा ही तो तुझको पाया था,
फिर क्यों अकेले में कमी किसी और की पली थी,

अश्को की बारात तो कभी बुलाई नही हमने,
फिर खुशियाँ क्यो हमसे यू रूठ कर चली थी,

इस कदर एहसानो तले दबाया था तुमने,
हम सोचे की इस ज़िंदगी से तो मौत ही भली थी,

किस्मत भी हॅमपर मेहेरबान इस कदर हुई "ए-दोस्त"
की जहाँ दफ़नाया गया हमे वो भी उसकी ही गली थी.

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