Thursday, July 31, 2014

चित्रकार


बना रहा था मैं एक चित्र,
गहराईयो में थोड़ा डूब कर,
तन्हाइयो से थोड़ा ऊब कर,
हाथो को आड़ा तिरछा हिला कर,
रंगो में सपना सुनहरा मिला कर,     
किसी के ख़यालो में यू खो कर,
आँसुओं से चेहरे को यू धो कर,
मस्ती में कुछ ऐसा झूम कर,
दृढ़ता को जज्बातो से चूम कर,
मुस्कुरहटो को पानी में पिघला कर,
गमो को समय की आग से जला कर,
दोस्ती का तज़ुर्बा अपना कर,
हर दर्द को कही अंदर दबा कर,
विचारो का युध यू छोड़ कर,
वक़्त की रफ़्तार कुछ यू मोड़ कर,
आँखो को उनसे यू चार कर,
उत्सुकता को मन में सवार कर,
कर्कष्ता को यू हवा कर,
मौसम को कुछ यू जवा कर,
पसीने को बिल्कुल भूल कर,
रास्ते के पत्थरो को यू धूल कर,
फूलो का बगीचा सा बना कर,
खुद को खुद में ही फ़ना कर,
बना रहा था मैं एक चित्र.

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