संभावनाएं
है बिखरी सी,
बिखरा हर पल
अंधकार है,
विषैले हैं सब
जीव यहाँ,
सर्पो का यह
संसार है,
प्रत्यंचाओ
कि होड़ में,
कहाँ विद्या का सम्मान
है,
इस बिकने वाली दुनिया
में,
इज़ज़त होना अपमान
है,
कमज़ोरी अब बलशाली
है,
इल्ज़ामों
के यहाँ पर
ढेर है,
आगे तो बस
मजबूरी है,
पीछे बनते सब
शेर है
सांसे लेती इस
मृत्यु को,
अब जीवन समझे
जीते है,
जहाँ मन
में रावण पलते
है,
सब रक्त
भी चाव से
पीते है.
कह दो इस
पावन धरती में,
सब सपना है,
बेमानी है,
कैसे बरसेंगे पुष्प यहाँ,
जब घर में
आग लगानी है.
No comments:
Post a Comment