Thursday, July 3, 2014

जलती बरखा

 
ना छेड़े कह दो बरखा को,
संग पिया ही मुझको जाना है,
बस एक मौसम ही तेरा है,
बाकी तो पिया सयाना है,

बूँदो की लडियाँ छम छम सी,
पायल की याद दिलाती है,
जो छूती है ये गर्दन को,
उस प्रेम का रस जगाती है,

कोई कहदो इन शैतानो को,
इस आँगन मे कूदे ना यू,
इस आँगन की हर एक झाँकी,
मुझे पी की याद दिलाती है, 

बस कुछ पल तेरा डेरा है,
फिर पिया मेरा दीवाना है,
मैं भी देखूं तेरी हिम्मत,
मुझको कैसे तू जलाती है.

No comments:

Post a Comment