Sunday, September 25, 2016

दो पंक्तियाँ

किनारो सी है यह ज़िंदगी, खुशियाँ छूकर गुज़रती है,
हवाओं सी आती है हिम्मत, किरणों सी बिखरती है || Dr DV ||







लहर सी टकराई तू, मैं किनारो सा मौन रहा, बरसी बारीशों सी , न जाने मैं तेरा कौन रहा || Dr DV||







प्रचंड सागर में, एक नाव का सहारा था, ऐसा ही शायद कुछ, वो रिश्ता हमारा था || Dr DV ||








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