ज़रूर कुछ बात है, इस रात में,
अनकहे जस्बात है, इस रात में,
छूकर गुज़री है साँसें तेरी हर्सू,
एक तेरी बरसात है, इस रात में
छोड़ आया था अपनी परछाई,
बस वो एक रात है, इस रात में
संभलते नही है एहसास मेरें,
भीगते लम्हात है, इस रात में
शीशो से करता हूँ बातें 'साथी',
हज़ारों आघात है, इस रात में ||
No comments:
Post a Comment