हर एक शब्द उसका तीर सा निकला,
फूलों का वो हार, ज़ंज़ीर सा निकला
वक़्त का खेल होता है बहुत निराला.
कमज़ोर था जो, शमशीर सा निकला,
ग़लतफहमी का तोहफा देने चला था,
खुशियों का पिटारा फकीर सा निकला
समझा कहाँ उसने, दिल का अफ़साना,
दावा वो पत्थर की लकीर सा निकला
तड़पने के बाद भी, गले से लगाया,
दोस्त वो मेरा 'साथी', पीर सा निकला || Dr. DV ||
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