सुबह से रात तक इंतज़ार किया,
चाँद तले बैठने को इनकार किया,
इश्क़ की दास्तान भी है अजीब,
उठकर जाने लगा, इकरार किया,
मुग्ध हुआ मैं पल में, जो देखा,
वर्षा ने इंद्रधनुष सा शृंगार किया,
यूँ मुस्कुरा उठा रोम-रोम मेरा,
नज़रों से उसने, ऐसा वार किया
भुला बैठा मैं खुद की हैसियत,
चाँदनी ने इस कदर प्यार किया
रूह के संबंध को समझा 'साथी'
उस रात का जब भी दीदार किया ||
No comments:
Post a Comment