Thursday, October 6, 2016

धरती के तारे


धरती में है, कितने तारे,
जितने सपने, उतने सारे,

ठान लिया जो तूने साथी,
तेरी भैंस, तेरी ही लाठी,

दोस्त को मेरे समझ न आया,
उसने अपने सिर खुजलाया,

पूछा उसने राज़ सुनहरा,
कैसे आख़िर छटे अंधेरा, 

खोल दिया मैने दरवाज़ा,
बोला उसको, सुन ओ राजा,

भूला आँसू, गुस्सा छोड़ा,  
पर्वत तोड़ा, नदी को मोड़ा,

मेहनत से फिर डगर बनाई,
खुशियों के रंग वो ले आई,

तुम भी ऐसा सपना पालो,
इंद्रधनुष से रंग चुरा लो,

रंग दो दुनिया अपने रंग मे,
चलते चलो सभी संग-संग मे,

दोस्त को मेरे समझ मे आया,
उसने भी, सपना बतलाया,

निकल पड़े हम दोनो फिर से, 
जीने जीवन, अपने दिल से,

तुम भी हो धरती के तारे, 
कर लो सपने, सच तुम सारे ||

No comments:

Post a Comment