Friday, August 8, 2014

गम-ए-इश्क़



अनकही परछाईया कभी यू डोल जाती है,
मिशरी भी कभी जिगर मे ज़हर घोल जाती है,   

कुछ तो बात होगी उस रात में,
जो बिन बोले सब कुछ बोल जाती है,

कुछ तो दर्द होगा उस सौगात में,
जो रूह मे भी मौत छोड़ जाती है    

अश्को को छुपाते है हम आँखो मे,
फिर भी वो राज़-ए-दिल कुछ यू खोल जाती है, 

बेवजह ना समझ इन वारो को तू "ए आशिक़" 
मौत भी आने के पहले ज़िंदगी तोल जाती है.

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