वफ़ा-ए-हुस्न के भी यहाँ, बड़े ही दिलचस्प अंदाज़ है,
प्यार भी है हमसे, और हम ही से वो नाराज़ है,
बहती नदियो सी कोमल, सुर्ख हवाओ सी सयानी है,
वो सिर्फ़ रानी ही नही, वो तो मेरे गीतो का साज़ है,
आसमानो की चाहत ना रही, ना ही तारों की आस है,
ये इंसानो की सोच नही, परिंदा-ए-इश्क़ का आगाज़ है,
बोलती है बड़े प्यार से, कि हमे केवल देखते ही हो क्यूँ,
कौन समझाए आफताब को. यह एहसास-ए-दिल बेआवाज़ है,
बस होंठो से लगाए रखते है, अब तेरे ही नाम को 'ए दोस्त',
जिंदगी देने वालो को खुदा बनाने का, बना बैठे हम रिवाज़ है ||
कवि - दिवाकर पोखरियाल
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