Sunday, October 12, 2014

दर्द का सिला


ना समझे थे,
दर्दे दिल को,
केवल समझे,
बढ़ते बिल को,
 
इन चढ़ते से,
मन के विष में,  
डूबे लाखो,
बस रंजिश में,

ढूँढे हर एक,
मॅन कि इच्छा,
ना जाने पर,
क्या है अच्छा,

हूँ हैरान मैं,
ये देख अब,
ना जाने तोड़े,
दिल वो कब,

कैसे पूछूँ खुद से,
मैं अब,
जब मारे छुरियाँ,
मुझको सब,

रह गया मैं,
कुछ अकेला सा,
एक ना संभला,
सवेरा सा,

फिर भी दिल मे,
यह आशा है,
शायद मुझको,
ही तराशा है,

बनाऊंगा धरती,
को स्वर्ग सा मैं,
पल पल में,
भरता रंग सा मैं | 

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