जेबो में भर के वो आँसू, कहते है ये तो नाम है,
ना बोले वो कभी प्यार से, पर दिल में बसता राम है,
हैरां हूँ मैं यह देख कर, गिरने कि हद भी गिर बैठी,
हंसते है अब वो देख के, जब भी होता कोई काम है,
कैसी फ़ितरत हम बना बैठे, जो देखे रह जायें हैरान,
बिन खोले आँखे खुद से हम, हर कोने में बदनाम है,
सोचा था मिल जाएगा वो, जो सच का ही बस साथी हो,
पूछा हमने जब रस्ता तो, वो बोले वो गुमनाम है,
बस ठाना था अब दिल मे ये, कि ढूँढ के उसको लाऊंगा,
जब कदम पड़े दो धूप में, सोचा बेहतर आराम है,
फिर भी निकला मैं निश्चय से, घर बार सभी छोड़ा मैने,
देखे पत्थर तो माना ये, इस पीड़ा का ना बाम है,
टूटा दिल मेरा भूख से, समझा कि क्यूँ अपराध है,
राहों में देखे दर ऐसे, ना जाने जो क्या आम है,
देखी हिम्मत, देखा पैसा, देखा इन्सा कैसा कैसा,
घर कि हालत तो खाली है, सड़कों में लेकिन जाम है,
सोचा कि ताक़त देखूं मैं, इन सब लोगो से मिल मिल के,
जब गहराई से पहचाना, तो पाया टूटे तमाम है,
भूला था खुद इस जग को मैं, कुछ करने की अब चाहत थी,
जब देखा मैने कब्रिस्तान, ये जाना कि सब आम है,
हैरानी में डूबा था मैं, ना समझा क्या होगा 'ए दोस्त',
जब अंधेरा गहरा सा था, मैं समझा कि हल श्याम है ||
कवि - दिवाकर पोखरियाल
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