Thursday, October 9, 2014

खुद-खुशी


उन चंचल चंचल नैनो में, हर पल कुछ यू मरते थे हम,
एक दिन के 24 घंटो में, बस याद उन्हे करते थे हम,

सावन की छूती बरखा में, भीगे थे उनकी ममता में,
बस उनके ही आकाश में, उड़ने से ना डरते थे हम,

उनका यौवन एक जादू था, जिसने हमको था मुग्ध किया, 
बस उनकी एक आवाज़ से, गिर गिर कर भी उठते थे हम,  

तडपे थे हम अब प्यार में, उनकी मीठी मुस्कान में, 
उनकी झलक एक पाने को, मीलो मीलो फिरते थे हम,        

क्यूँ मौत को गले लगा लिया, मत पूछो तुम मुझसे 'ए दोस्त',
जब भी मिलते थे सपनो में, बस बाहों में गिरते थे हम ||  

कवि - दिवाकर पोखरियाल

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