कैसे मैं करूँ यह बयान
उसके आँसू पवित्र थे,
बनाए जो टूट टूट कर,
ज़िंदगी के वो चित्र थे,
गिनती थी साँसे हर पल,
खुशियाँ गम से सींचती थी,
किस्मत को देती थी दोष,
खुद ही रेखाए खींचती थी,
आदमी पर इल्ज़ाम लगाकर,
हर मौसम, रोना आता था,
हर मुश्किल उसपर आती,
बेबसी ही उसका छाता था,
दूसरो को कमज़ोर बताकर,
आगे बढ़ जाती थी,
खुद को वो ज़ोर बताकर,
तालियाँ हज़ार पाती थी
हर वृक्ष के तले वो,
गाती थी गाने तन्हाई के,
होंठो मे रखती थी शोले,
दिखावे के और रुसवाई के,
प्रेम की बातें अनगिनत,
पर इल्ज़ाम दूसरे का,
पीने की इच्छा है खुद,
पर जाम हो दूसरे का,
'तुम क्या जानो मुझे',
ये वाक्य बस आम था,
दिल मे बसा ज़्वलामुखी,
ज़हर ज़ुबा मे तमाम था,
आख़िर बराबरी कर ली,
मुखौटे हज़ार लगा कर,
ताकतवर है वो आज,
खुद को कमज़ोर बना कर,
जो भी देखते थे,
लोग इंसान बुलाते थे
पर उसकी आदतों से उसे,
कमज़ोर, बेबस पाते थे ||
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