Dr. Diwakar Pokhriyal has a passion for Writing. He has written 19 books that include poetry, short story collections, and Novel. He has been a part of more than 100 poetry anthologies with poets around the world. He has been awarded as 'Voice of Indian Literature', 'Author of the Year 2019', 'India Star Icon Award 2019', 'Top 50 Influential Author 2K18', 'Limca Book of Records – 2017',
Tuesday, March 31, 2020
Sunday, March 29, 2020
Saturday, March 28, 2020
Corona Virus (Acrostic Poetry)
Carelessness or crafted act,
Opting death or a pact,
Riddles are all around,
Oh, Lord! Deadly sound,
Nostalgic times are back,
At the risk of hack,
Virus is spreading fast,
Indeed a cure should last,
Running around will not help,
Urgency to store will not help,
Stay Home and kill the Virus.
(Acrostic Poetry is the poetry from where each alphabet of the Title takes the first position of each line)
कोरोना
किसी से हुई ग़लती,
किसी की सज़ा हुई,
किसी के हुए आँसू,
किसी का मज़ा हुई,
अनगिनत बार बोला,
पर नादान ना समझा,
अपने घर का शायद,
वो, मान ना समझा,
घूम रहा है जानकर,
शायद तबाई मचाने को,
जाने किसको आना पड़े,
अब इसको समझाने को,
आज़ादी के नाम पर,
अब बीमारी फैलाना है,
शायद अपनो को ही,
शमशान पहुचाना है,
सफाई का महत्व देखो,
आज सामने है आया,
रास्ते में थूकता था जो,
आज सैनीटाइजर लाया,
जुड़ी हुई है यह दुनिया,
अकेलापन नही सोचना है,
इस बीमारी ने समझाया,
खुद ने खुदको रोकना है,
इससे निकल कर अब,
शायद हम समझ जाए,
दूर होने की जगह अब,
एक दूजे के पास आए,
कोरोना का अब अंत,
अत्यंत ज़रूरी है हुआ,
सब मिलकर करे ख़ात्मा,
बस यही है मेरी दुआ ||
इश्क़
पल दो पल का मिलन था,
इश्क़ का शायद चलन था,
यू घुला था मैं, उसमें कुछ,
जैसे जन्मो का, वचन था,
कहीं छुपी थी, हवाओं में वो,
और बेचैन यूँ, मेरा मन था,
असमंजस से, घिरा था मैं.
किस कर्म का, सृजन था,
ढूँढने पर भी, नही मिला,
कहाँ ध्यान, कहाँ तन था,
पर थी होंठों पर मुस्कान,
एहसासों में, कुछ वजन था,
कुछ होश नही था मुझको,
उसके ख्यालों का हवन था,
रहता उसके इंतज़ार में 'साथी',
बस वो, मैं, और उपवन था||
Thursday, March 26, 2020
एहसास नही
चलना सिखाया था जिसने, आज उसके पास नही,
आज अलमारी में ढूँढा, मिला उसका लिबास नही,
कभी घंटो-घंटो बैठा रहता था मैं उसके ही साथ,
जबसे सीखा है मैने बढ़ना, रुकने की आस नही,
प्यास बढ़ा ली है इस जीवन में, कुछ इतनी मैने,
पीना सिखाया था जिसने, आज उसकी प्यास नही
चाहतों के बल पर ही पाई है, बहुत मंज़िलें यहाँ,
आज भी छुपी है अनगिनत, पर वो प्रयास नही,
जाने क्या खोया है मैने बढ़ते हुए आगे 'साथी',
पाए बहुत मुकाम, पर रहा अब कोई एहसास नही ||
Monday, March 23, 2020
Sunday, March 22, 2020
Poetry & You
Isn’t it inseparable?
Poetry & You,
Like an engrossing fable,
Like riddle & clue,
A date with a smile, or
Mysterious separation
A fate so agile, or
Memorable expression
A dancing heart, or
A silent tear of pain,
A spec of dirt, or
A laughter lane,
A flow of emotions, or
A friend in need,
A sense of promotions, or
A care taker indeed,
A mother at times, or
A father standing tall,
Be with you in rhymes, or
At times when you fall,
Like a relation so pure,
Blooming with time,
No-one is so sure,
About this unnoticed crime,
Poetry & You,
Isn’t just for demises,
It’s like a part in you,
That remains in love, in crisis.
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