Tuesday, January 24, 2017

आज भी


आज भी ढूँढ रहा हूँ,
मैं अपनी हँसी को,
जो रुक गयी थी,
एक समय में,
जो आगे ही नही बढ़ा,
कौन कहता है,
कि समय नही रुकता,
पूछो उनसे जिन्होने,
खोया है कोई अपना |    
आज भी ढूँढ रहा हूँ,
मैं परछाई अपनी,
जो छुपी बैठी है,
मेरे ही आस पास कहीं,
ना जाने क्यूँ,
वो भी कुछ ऐसी है,
साथ तो मेरे है हर्सू,
पर दिखाई नही देती,

बिल्कुल तुम्हारी तरह |

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