ख़ानाबदोश है ज़िंदगी
और आवारा इच्छाए,
रुकने की चाहत बड़ी,
कौन दिल को समझाए,
पास होने की खातिर,
अक्सर दूर चले जाते है,
तारो को तोड़कर वो,
घर खाली पाते है,
सूनी गलियो को,
उनका इंतज़ार होता है,
और उस बावले को,
कल से प्यार होता है,
आज को तोड़कर,
कल जोड़ने की बात करते है,
सूरज मध्यम हुआ जो,
दिन को रात करते है,
मीठी सी ज़िंदगी को,
ज़हर सा पीते है,
खुशियाँ आएगी कल,
यही सोच जीते है,
थक कर यहाँ अक्सर,
टूट जाते है धागे,
गुलाब की होड़ में,
तन्हाई पाते है अभागे,
यह खेल निराला,
जाने किसने सिखलाया,
किनारो में बैठाकर,
संगम क्यूँ दिखलाया,
बस दौड़ में खोए है,
कौन गले से लगाए,
ख़ानाबदोश है ज़िंदगी
और आवारा इच्छाए|
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