उनका महल मेरे काम न आया,
दर्द होता रहा पर बाम न आया,
खुद से बना बैठे हमको मज़बूर,
पल भर उनको आराम न आया,
दूर की सोच तले दबे रहे नादां,
पास उनके कभी धाम न आया,
चिंता के सागर मे गोते रहे खाते,
जीने का उनको, कलाम न आया,
कैसे समझेंगे ज़िंदगी वो 'साथी',
हाथो में जिनके, जाम न आया || DV ||
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