Tuesday, September 15, 2015

दर्दनाक खंजर


सूनी ज़िंदगानी थी मेरी,
अधूरी कहानी थी मेरी,
लिख डाली खून से तेरे,
कमसिन जवानी थी मेरी,

भरोसे की नाव में सवार,
तेरे इश्क़ में था बेकरार,
सच से जो परदा हटाया,
खुद से हुआ मैं शर्मसार,

ना समझा था दोष अपना,
मिल कर देखा था सपना,
आँसुओ से पूछ बैठा मैं,
ज़हर को क्यूँ था पनपना,

वक़्त का अजीब खेल था,
ज़मीं आसमान का मेल था,
प्रेम की चाहत मे गुज़रा जीवन,
अंत में निकला सब तेल था,  

तुझसे मिलना इत्तेफ़ाक़ था,
मुखौटा तेरा शर्मनाक था, 
पीठ में जो था तूने घोपा, 
वो खंज़र बड़ा दर्दनाक था ||

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