प्रेरणा के विचार पर अल्फ़ाज़, शाम तक,
ज़रूर खुल जाएँगे सब राज़, शाम तक,
बिन अल्फ़ाज़ धड़कनो मे बस गये हो तुम,
आँखो से उतारा दिल का साज़, शाम तक,
गुलाबी गालो पर नखरो का वास है तुम्हारे,
पर कैसे रह पाओगे तुम नाराज़, शाम तक,
एक होने का विचार, जहन मे तुम उतारो,
तैयार रखेंगे हम इश्क़ का जहाज़, शाम तक,
लाख कोशिशें कर डाली थी महज़बी ने 'साथी'
पर बन ही बैठी अपनी हमराज़, शाम तक ||
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