Saturday, August 29, 2015

प्रतीत हो


चमकती सी है कभी,
कभी तन्हाई सी प्रतीत हो,
दहकती सी है कभी,
कभी पराई सी प्रतीत हो,   
ललचाती सी है कभी,
कभी इनाम सी प्रतीत हो,
रूलाती सी है कभी,
कभी ईमान सी प्रतीत हो,
निगल जाती है कभी,
कभी हैवान सी प्रतीत हो,
सुझाए सौ रास्ते कभी,
कभी भगवान सी प्रतीत हो,
गिराए ये मुझको कभी,
कभी दुश्मन सी प्रतीत हो,
उठाए जब भी कभी,
कभी उपवन सी प्रतीत हो,            
जलाए ये मुझको कभी,
कभी सौतन सी प्रतीत हो,
लगाए आग मुझमे कभी,
कभी यौवन सी प्रतीत हो,  
अनेक रंगो से भरी है ये,
बेरंग मगर प्रतीत हो,
है ज़िंदगी की ये साथी,
परंतु रात सी प्रतीत हो |


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