डूबते को तिनके का सहारा होता है,
हर मझदार का यहाँ किनारा होता है,
पर ठान ले जो मरने की यहाँ खुद,
कदमो में ना उसके ज़माना होता है,
अंधेरो बिना कहाँ है सवेरो की एहमियत,
जो ना समझा ये, वो बेगाना होता है,
टूटते है पत्तें भी वृक्ष से यहाँ पल पल,
लेकिन फूलो का ही अफ़साना होता है,
हर रात काली भी लगती है, ख़ूँख़ार भी,
पर पार खड़ा सवेरा, मस्ताना होता है,
हिम्मतें तोह्फो में नही मिलती 'जनाब',
टूट के जो जुड़ा नही, बेचारा होता है||
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