बेबस हूँ मैं
आज यहाँ ,
इन शमताओ की
विषमताओ से,
पर्वतीय रुपी धोखों एवं
,
ज़हरीले शब्दों की
घटाओ से,
बेबस हूँ मैं
आज यहाँ ,
नयनो से बरसते
सावन से,
अशुरक्षित है इंसा जहा,
उस अद्भुध जग
के रावण से,
बेबस हूँ मैं
आज यहाँ
उन मृत इच्छाओ
के तेज़ से,
चुभते है जो
सदैव यहाँ,
एसे काँटो की
सेज से,
शुधा विहीन जीवन
जीते,
थकान की अब
लाज कहाँ,
सुख की हर
आशा में मैं मग्न,
बेबस हूँ मैं
आज यहाँ।
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