क्या किया एक कवि ने आज तक,
अपनी कविता के लिए,
क्या कभी उसने साथ मे,
दो पल भी मुस्कुरा कर है जिए,
क्या कभी उसने साथ मे,
दो पल भी मुस्कुरा कर है जिए,
बस लिखता रहा,
अपना गम और बातें,
और वो भोली सी सरिता,
बहती रही, बिता अपनी दिन और रातें,
अपना गम और बातें,
और वो भोली सी सरिता,
बहती रही, बिता अपनी दिन और रातें,
क्या मिला उस मासूम को,
बन के एक दर्द का ज़रिया,
क्योकि दर्द तो दर्द ही रहा,
ना बदला उसका नज़रिया,
बन के एक दर्द का ज़रिया,
क्योकि दर्द तो दर्द ही रहा,
ना बदला उसका नज़रिया,
कमाता रहा वो शोहरत,
और श्रोताओ की तालिया,
पर उस दीवानी को,
ना दे पाया खुद से - दो बालिया,
और श्रोताओ की तालिया,
पर उस दीवानी को,
ना दे पाया खुद से - दो बालिया,
अपने आक्रोश और जोश का,
सारी दुनिया मे डंका बजाया,
पर उस मासूम प्रेमिका को,
कभी उसने पास ना बुलाया,
सारी दुनिया मे डंका बजाया,
पर उस मासूम प्रेमिका को,
कभी उसने पास ना बुलाया,
बस करता रहा इस्तेमाल,
ऐश्वर्य और अभिमान के लिए,
उस दुल्हन के शृंगार को,
ज़ालिम ने दो पल भी ना दिए,
ऐश्वर्य और अभिमान के लिए,
उस दुल्हन के शृंगार को,
ज़ालिम ने दो पल भी ना दिए,
क्या फ़र्क हुआ फिर,
इंसान और कवि में,
कविता तो बस जलती रही,
प्रकाश मे इस अंधे रवि के |
इंसान और कवि में,
कविता तो बस जलती रही,
प्रकाश मे इस अंधे रवि के |
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