एक नाज़ुक सी कली,
खिलकर गुलाब हो गयी,
इश्क़ की गिरफत में,
देखो कैसे बेहाल हो गयी,
महक गये वो सारे प्याले,
जो उसने होंठो से छुए,
मुस्कुराहट से उसकी जाने,
कितने बाग, हरे हुए,
बलखाती सी, शरमाती सी,
एक रोज़ वो मुझसे टकराई,
नज़रो से जो छुआ मैने,
वो एक गुड़िया सी शरमाई,
हल्की-हल्की सी बारिश नें,
फिर एक आग लगाई,
उसकी परछाई ने भी,
मुझको दिल्लगी सिखलाई,
तारों की छाँव में उसने,
जब मुझको गले से लगाया,
इश्क़ अपना उस दिन से,
क्या खूब रंग लाया,
वो बन गयी मेरी चाँदनी,
मैं उसका चकोर हो गया,
हम दोनो एक हो गये,
कुछ ऐसा शोर हो गया ||
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