कुछ ऐसे माहौल में, जीना सीख गये,
बिना गम के हम यहाँ, पीना सीख गये,
लोग अंजान थे और अंजान ही रहे यहाँ,
कम्बख़्त क्या जाने, हम सीना सीख गये,
कुछ ऐसे गिरे हम इश्क़ के उस कुएँ में,
पढ़ने चले किताबें, पर रवीना सीख गये,
ज़िंदगी ने दिखाई, इतनी झुलसती रातें,
पोछना उस ग़रीब का पसीना सीख गये,
इतनी ठोकरे खाई जीवन में हमने 'साथी'
हम खुद को बनाना, नगीना सीख गये ||
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