मेरे मन की प्यास बुझाने को, यह सागर भी कम है,
होंठों में रखते है खुशियाँ, और आँखो से पीते गम है,
कपड़ो की चमचमाहट सूरज को करती चकाचौंध यहाँ,
जी रहे है जीवन खुशियों में, बहुतों को ऐसा भ्रम है,
बदलते है सामान पल में यहाँ, रूह की फ़िक्र किसको,
खुद को बदल दे जो यहाँ, इतना किसी में न दम है
खुले बंधन, खुले धागे, खुले लब और खुले जज़्बात,
बंद आँखों से गुजरती इस ज़िंदगी में सब गये रम है
बन तन्हाई को पीकर, महफ़िल में लेते साँस 'साथी'
किनारे हुए है किनारे, ऐसी मझदार से गुज़रतें हम है || Dr. DV ||
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