उस दिवाकर को देख, ये दिवाकर हैरान हुआ,
बस दो घड़ी अंधेरे से, कैसे मैं परेशान हुआ,
वो तो जल रहा है सदियो से रोशनी बाँटता,
फिर मेरा ये ईमान कैसे, अभी से हैवान हुआ,
जाने कितने अंधेरे मिटाए है, इसने धरती के,
और कुछ बोल से कैसे, अब मेरा अपमान हुआ,
दिखाई ऐसी दुनिया इसने, एक पल में पलटकर,
फीका सा वो रोटी का टुकड़ा, मेरा पकवान हुआ,
बहुत कमज़ोर महसूस करता था खुद को 'साथी'
इस काफिले के आते ही, हर भय अंतर्धान हुआ || DV ||
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