चहु ओर जो देखूं, बस क़त्ले-आम है,
प्यार के बाशिन्दो को मिलते जाम है,
सुर्ख अदाओ से चलाते है वो छुरियाँ,
कभी अल्लाह है जिनका, कभी राम है,
फैलाते है हैवानियत का डर वो ख़ास,
इंसानियत का खून ही जिनका काम है,
नशा दौलत का सिर चढ़ा है कुछ ऐसा,
बाज़ारो में बिकते से ईमान तमाम है,
इस कदर गिरी है अब सोच दुनिया की,
उठाने वाला हर शख्स यहाँ बदनाम है,
ना समझा ये छोटी सी बात वो 'साथी',
पीठ में घोपना खंजर, आजकल आम है || ड्व ||
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